कश्ती…
ख्यालों में डुबी एक कश्ती
जो लहरों से लड़ना चाहती है
इंतज़ार है बस तुफान का
वो जन्नत को छूना चाहती है !
अभी मेहमान हैं एक तालाब की
बादल सा बनना चाहती है
तालाश बस एक दरिया की
सागर में मिलना चाहती है !
लड़ कर गोताखोरों से
वो अपनी राह बनाती है
समेटे हुए ख्यालों को
अपनी मंजिल को छुना चाहती है!
पर ये सफर आसान नहीं
तालाब में ज्वार आना,
ये कुदरत का कोई खेल नहीं
गिर जाते हैं ज्वार-भाटे की भांति
ये सबके बस की बात नहीं,
क्या इन्ही ख्यालों में डुबी कश्ती की नइया
अपनी मंजिल से मिल पाएगी?
या किसी बूंदों की भांति
वो सागर में मिल जाएगी?
🙏🙏🙏🙏
लेखक – सोनू कुमारी
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