खुशियाँ…
ढूढंते-फिरते हैं हम
पल-पल खुशियों के पिटारे
पर पिटारो को दस्तक देते, मैने
अक्सर गरीबों के मोहल्लो में देखा है।
घर को रोशन करते है हम
दामिनी मे भी दीप जलाकर
पर दीवाली में महज़ एक दीप जलाकर,
मैने इन्हें खुशियों के खील बाटते देखा है।
हम होली में रंगों का त्यौहार मनाते है
रंग-गुलाल लगाते हैं
पर हर दिन खुशियों के रंग बिखरते, मैंने
इनके मोहल्ले में देखा है।
देखा है अमीरों को पल-पल
खुशियों की तलाश करते
पर खुशियाँ क्या है,
ये मैंने इनके मुस्कान पर रहते देखा है।
🙏🙏🙏🙏
लेखक – सोनू कुमारी
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