विदाई…
आखिर किसने ये रीत बनाई
क्यो बेटी ही ब्याह के हुई पराई
भिगो-भिगो कर पलकों को
बिटिया ने प्रश्न की झड़ी लगाई।
बैठा- बैठाकर कंधों पर
जिसको सारा संसार दिया
फिर क्यों कन्यादान में
पिता ने सब कुछ त्याग दिया।
माँ बिलख-बिलख कर रो पड़ीं
अश्रु में आँचल धो पड़ीं
पर ना बदल सकी रिवाजों को
क्यो बेटी बाबूल का आंगन छोड़ चली।
था कवच जो कल तक अपनी बहना का
वो भी ना आंसू को छिपा सका
राखी की रेशम डोर को
आखिर वो भी क्यों ना बचा सका।
देखो! वो सब कुछ छोड़ चली
सब रिश्ते नाते पीछे छोड़ चली
ओढ़ कर वो संस्कारों का आँचल
बचपन की गलियां छोड़ चली।
🙏🙏🙏🙏
लेखक – सोनू कुमारी
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