Essay on Indian culture in Hindi : भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है. जिसे कायम रखने के लिए काफी संघर्ष किया गया है. हमारी संस्कृति जो लगभग 5,000 हज़ार वर्ष पुरानी है. जिसका एक प्रमुख उदाहरण हम सिंधु घाटी की सभ्यता को मान सकते हैं.
आज पूरे विश्व की संस्कृतियों में से भारत की संस्कृति को एक महान भारतीय संस्कृति के रूप में देखा जाता है क्योंकि भारत ही एक ऐसा देश है. जहाँ अलग अलग धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, परंपराओं, वेशभूषा, अस्मिता आदि के लोग रहते हैं. जिनकी अलग अलग साहित्य, कला, जीवनशैली आदि है. जहां सबको आपने अपने आदर्शो, साहित्य, संस्कृति आदि को मानने की पूरी स्वतंत्रता दी गई है. एक तरह से कह सकें है कि भारत एक विभिन्नता वाला देश होकर भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है.
भारतीय संस्कृति का अर्थ :
हमारे भारतीय संस्कृति में भारतीय का अर्थ “भारत के निवासी” हैं तथा संस्कृति का अर्थ “भाईचारा” हैं.
संस्कृति क्या है?
जहाँ भारत के लोग आपस मे भाईचारे का भाव रखते हैं. एक दूसरे के साहित्य, कला, जीवनशैली, भाषा, वेशभूषा, अस्मिता आदि का सम्मान भी करते हैं. इसे ही संस्कृति कहते हैं.
भारतीय संस्कृति क्या है ?
भारतीय संस्कृति वह संस्कृति है. जिसमें कई लोग अलग अलग धर्म और रीति रिवाजों को मनाने वाले हैं. जिनकी जीवनशैली, साहित्य, कला आदि एक दूसरे से भिन्न है, फिर भी सभी साथ में मिलकर रहते हैं और एक दूसरे की धर्म, परंपरा, रीति रिवाजों, कला, अस्मिता आदि का सम्मान करते हैं इसे ही भारतीय संस्कृति कहा जाता हैं. जहाँ इतनी विभिन्नता होने के बाद भी लोगों में एकता हैं. इन बातों का उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी हैं.
भारतीय संस्कृति का उल्लेख संविधान में :
भारतीय संस्कृति का उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी देखने को मिलता है. जहाँ पर यह स्पष्ट दिया हुआ है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं. और यह के लोग किसी भी धर्म को मान सकता है उस पर किसी प्रकार का कोई दवाब नही डाला जाएगा. अपनी इच्छा से लोग जिस धर्म और जाति को अपना चाहते हैं. वो उस धर्म को अपना सकते हैं. सरकार ने यह भी साफ कह दिया हैं कि किसी भी प्रकार से राजनीतिक कार्यों में धर्म से संबंधित कोई बात चीत न कि जाए. जैसे – चुनाव के समय कोई भी यह वादा नही करेगा कि हम मुस्लिम को मस्जिद ओर हिन्दू को मंदिर बनवाकर देगें. यह सब कार्य सरकार का नही है. हमारे मौलिक अधिकारों में भी किसी भी धर्म को मनाने की स्वतंत्रता दी गई है.
भारतीय संस्कृति का इतिहास :
भारतीय संस्कृति जो एक प्राचीन संस्कृति के साथ साथ लगभग 5,000 हज़ार वर्ष पुराना भी है. इस संस्कृति को बरकरार रखने के लिए बहुत सारे राजाओं – महाराजाओ ने अपने प्राणों की आहुति दी है. यह पर अलग अलग राजा आए जिनमें से कुछ ने साम्राज्य विस्तार को अधिक महत्व दिया तो किसी ने अपने साम्राज्य विस्तार के साथ साथ अपनी संस्कृति का भी विस्तार करने की इच्छा रखी.
आज जो हम विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, भाषा/बोली, परम्पराए ,कला, साहित्य, संस्कृति और रीति-रिवाज़ो को देख रहे हैं. यह सब उनकी ही देन है. यह पर कई राजा महाराजा ने आक्रमण किया और यह पर राज किया जैसे – मुगल, अफ़ग़ान आदि इन सभी ने अपनी अपनी संस्कृति, परंपरा और रीति रिवाजों का वाहन किया और इनका गहरा छाप छोड़ गए. सिंधु घाटी सभ्यता को इसके एक विशेष उदाहरण के रूप में देख सकते हैं.
भारतीय संस्कृति का इतिहास अपने धार्मिक ग्रथों के लिए अधिक लोकप्रिय हैं।
भारतीय संस्कृति का धार्मिक इतिहास :
जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे धार्मिक ग्रथ रामायण, भागवत गीता, कुरान शरीफ, बाइबिल आदि है. जो हमें हमारे प्राचीन काल से चले आ रहे धार्मिक अनुष्ठानों, स्थालों आदि के महत्व को बताती है जैसे – अजमेर शरीफ का महत्व, तीर्थ यात्रा का महत्व आदि. इन ग्रथों से लोगों को जीवन में सही राह पर चलने और अपने अपने धर्मों की राह पर चलते हुए दूसरे की साहित्य, कला, परंपरा, जीवनशैली, भाषा आदि सम्मान करने का ज्ञान देते हैं. यह हमें हमारे देश में कैसे सूफी संतों का आगमन हुआ, कैसा यह पर राम राज्य स्थापित हुआ था, कृष्ण जी का भागवत गीता का ज्ञान देना आदि से हमें परिचित करता है.
भारतीय संस्कृति का महत्व :
भारतीय संस्कृति जो आज के समय में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. हमारे जीवन में जो लगभग 5,000 हज़ार वर्ष पुरानी है. विश्व के महान संस्कृतियों में से सबसे ज्यादा सम्मान “भारतीय संस्कृति” को दिया जाता है. क्या आपने सोचा ऐसे क्यों होता है ? तो इसका उत्तर कुछ जानते होंगे और कुछ नहीं. तो आइए आज हम आपको बताते हैं. इसका कारण क्या है और क्यों यह पूरे विश्व में इतनी प्रसिद्ध हैं.
जैसा कि हम ने आपको बताया कि भारत एक विभिन्नता वाला देश है. यहाँ पर कुछ 29 राज्य है और हर राज्य की अपनी एक अस्मिता, खानपान,
जीवनशैली, सहित्य, वेशभूषा, भाषा, धर्म, जाति, परंपराएं औऱ रीति-रिवाज़ आदि है. इन सभी राज्य के लोगों का अपना ही एक इतिहास रहा है जैसे –
*अस्मिता ; अस्मिता का अर्थ होता हैं अपनी एक पहचान होना. जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था तभी सब अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे थे और जब भारत आजाद हो गया. सबसे पहले सभी राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता, अपनी पहचान/ अस्मिता को सबसे ज्यादा महत्व दिया और अपनी एक अलग पहचान के लिए वर्मा नदी को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करवाना चाहती थी.
भारत ने इन्हें फिर स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया, फिर बांग्लादेश ने भी खुद को स्वतंत्र करवाने तथा पाकिस्तान में मिलने की बात की जो भारत के लिए यह एक आंतरीक सुरक्षा की दृष्टि से सही नही था . तो बांग्लादेश ने उसमे न मिलने की बात के लिए सहमत हो गए. यह भी स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हो गया.
कहते हैं यह पर मुस्लिमों की संख्या सबसे ज्यादा थी और वह अपनी पहचान न खो दे इसलिए इन्होंने स्वतंत्र की मांग की . इसके बाद फिर बाकी राज्य ने भी यही किया और सब अलग अलग राष्ट्र घोषित हो गया तथा सबने अपने यह पर जिस भाषा, बोली, रहन सहन के लोग सबसे ज्यादा था उस राज्य के नाम उन्ही सब बतो को ध्यान में लेकर किया गया . आज हम भारत में 29 राज्य को देख सकते हैं जैसे – दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब आदि.
*खान-पान ; इन सभी राज्य में खान पान को लेकर चले आ रहे थे, इन सभी राज्यों की अपनी अपनी एक परंपरा और रीति रिवाज के अनुसार खान पान करते हैं जैसे – मद्रास में साम्भर, तो पंजाबी में सरसों का साग ओर मक्के की रोटी ,तो आगरा के पेड़े आदि यह सब अपने यह के स्वादिष्ट व्यंजन मिठाई के लिए काफी प्रसिद्ध हैं.
*वेशभूषा ; जैसा कि हम जानते हैं कि लोगों की जिस तरह अलग अलग अस्मिता, खान पान आदि हैं. उसी प्रकार वह के संस्कृति के अनुसार ही वस्त्र धारण किए जाते हैं. जैसे – पंजाब में सूट, तो गोआ में पश्चिम वेशभूषा, वनारस की बनारसी साड़ी, तो बिहार में साड़ी के साथ घूंघट लेना और मुस्लिम समाज में तो सब बुराख पहनते हैं. एक तरह से हम यह भी कह सकते हैं की जैसा देश वैसा भेषा होता हैं. फिर आप दुनिया के किसी भी क्षेत्र में चले जाओ.
*भाषा ; हमारे भारत में 29 राज्य हैं जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न भाषा बोली जाती हैं. हमारी 18 बोलियां हैं और 5 उपभाषा हैं. इसके बाद भी हमारी राजभाषा हिन्दी हैं जिसका अर्थ है “सर्वसाधारण से लेकर शिक्षित वर्ग तक सबके द्वारा प्रयोग की जानेवाली भाषा का सर्वमान्य रूप”. 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को भारतीय संविधान में राजभाषा के रूप में स्थान दिया गया. हमारी राष्ट्रभाषा खड़ी बोली है. जानिये भाषा का विस्तार से नाम…..
*उपभाषाएँ और बोलियां साथ में इनके नाम ;
1. पश्चिम हिंदी – खड़ी बोली, बृजभाषा, हरियाणी (बंगारू), बुंदेली, कन्नौजी, निमाड़ी।
2. राजस्थानी हिंदी – मारवाड़ी, जयपुरी (हाड़ौती), मेवाती, मालवी।
3. पूर्वी हिंदी – अवधि, बघेरी, छत्तीसगढ़ी।
4. पहाड़ी हिंदी – पश्चिम पहाड़ी, मध्य वर्ग पहाड़ी।
5. बिहारी हिंदी – मगही, मैथेली, भोजपुरी।
भारतीय संस्कृति ही है जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को नैतिक मूल्यों और शिष्टाचार का पाठ पढ़ती आई है. जानिए हमारे मूल्य के बारे में –
भारतीय संस्कृति के मूल्य
भाईचारा
सम्मान
आदर
इंसानियत
यह सब हमारे नैतिक मूल्य है जिन पर चलकर आज भारत में इतने सारे धर्म, जाति के लोगों के होने के बाद भी सभी एक दूसरे के साथ शांति और प्रेम से रहते हैं. यह पर किसी को भी कम ज्यादा न समझ कर एक समान समझ गया है. जिसका एक प्रतीक हमारे देश का राष्ट्र गान है. जो किसी विशेष भाषा का नही अपिन्तु सभी राज्यों की सहमति से बना एक राजभाषा है हिंदी और इस भाषा में रविन्द्र नाथ टैगोर ने राष्ट्र गान “जन गण मन अधिनायक जय हे” लिखा है. जो हमारे देश की एकता और अखंडता को दर्शता है.
हमारी भारतीय संस्कृति की एक ओर अच्छी बात है वह यह है कि यह पर चाहे कितनी भी विभिन्नता हो, लेकिन यह के लोग लोगों को उनकी सोच और गुणों को प्राथमिकता देते हैं. यह पर लोग में आपसी तालमेल है. जिससे वह आपस मे विन्रमता पूर्वक वार्तालाप करते हैं और यह पर लोग अतिथि देवो भव की परंपरा को क्षद्धा के साथ निभाते हैं. यह सब बाते ही है जो हमारी भारतीय संस्कृति को इतना महत्वपूर्ण बनती है.
साहित्य के क्षेत्र में साहित्यकारों के नाम :
साहित्य के क्षेत्र में साहित्यकारों का सबसे बड़ा योगदान है. जिन्होंने अपनी रचनाओं के साथ साथ ही हिंदी भाषा का पूरे भारत तक पहुंचने का काम किया है.
हिंदी भाषा का प्रयोग भारत के लगभग अधिकांश भू भाग में ग्यारहवीं शताब्दी से ही किया जाता था. पश्चिम में राजस्थान, हरियाणा से लेकर उत्तर में हिमाचल प्रदेश और पूर्व में बिहार, झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ तक सभी इसका प्रयोग करते थे. इसका पता हमें तब के साहित्यकारों की रचनाओं से पता चलता है जैसे चंदबरदाई, विघापति, सुर, तुलसी, जायसी, कबीर, बोघा, बिहारी, भारतेंदु आदि कवियों ने हिंदी की विभिन्न बोलियों में साहित्य की रचना कर इसे समृद्ध किया है.
भारतीय संस्कृति का प्रभाव :
हमारे भारतीय संस्कृति का प्रभाव पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है. यहाँ पर देश विदेश से लोग घूमने आते हैं और हमारी संस्कृति से काफी प्रभावित भी होते हैं. वह वापस जा कर हमारे यह कि धार्मिक स्थलों के बारे में ओर लोगों को बताते हैं और फिर वह भी यह आते हैं इससे हमारी पर्यटन विभाग को काफी लाभ होता है तथा विदेशी मुद्रा का भी निवेश होता है.
विदेशी लोगों का यह आने से हमारे भारतीय संस्कृति का एक तरफ से प्रचार प्रसार भी हो जाता है.
आज के समय में भी भारतीय संस्कृति का तालमेल वैसा ही है जैसे प्राचीन काल में था. इसका एक उदाहरण हम 26 जनवरी के पैड को मान सकते हैं. जहां पर हर राज्य सरकार की ओर से एक एक टीम बना कर दिल्ली में भेजते हैं और 26 जनवरी को पैड में भाग ले कर अपनी साहित्य, कला, संस्कृति, भाषा और जीवनशैली के बारे में हमे बताते हैं.
यह पर हर प्रकार के बच्चे फिर वह सिख हो या मुस्लिम या हिन्दू सब मिलकर एक साथ पढ़ते हैं और साथ ही मिलकर सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गाते हैं.
भारतीय संस्कृति पर प्रभाव :
माना कि विदेशी पर्यटकों के आने से हमे काफी लाभ होता हैं और विकास की ओर यह एक अच्छा कदम भी है लेकिन इसका एक नुकसान भी है और वह यहां हैं कि विदेशी पर्यटक जैसे हमारे संस्कृति से प्रभावित होते हैं वैसे ही भारत के निवासी भी उनकी संस्कृति से प्रभावित हो कर पश्चिमी संस्कृति को अधिक तेजी से अपना रहे हैं. जिससे हमारी संस्कृति पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ हैं.
भारतीय संस्कृति से जुडी अवकाश :
जैसा कि हम जानते हैं कि यह पर हर किसी को सामान अधिकार प्राप्त है इसलिए यह पर सभी की संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठान आदि का ध्यान रखा जाता है फिर चाहे वो दीवाली हो या ईद या फिर क्रिसमस आदि सभी को उनके जीवनशैली में आने वाले त्यौहार के लिए सरकार की तरफ से सरकारी अवकाश घोषित किया गया है. ताकि सभी आपने अपने धर्मों का वाहन कर सकें और आपसी तालमेल बिठाने में भी काफी लाभदायक सिद्ध होती हैं.
निष्कर्ष :
हमारी भारतीय संस्कृति ही है जो इतनी भिन्नता में भी इतने अच्छे से आपसी तालमेल बिठाने में साकार रही हैं. यह पर सभी आपसी भाईचारे और प्रेम भाव की भावना के साथ मिल-जुल कर रहते हैं. एक दूसरे के साहित्य, कला, जीवनशैली का सम्मान भी करते हैं. यह पर भारतीय संस्कृति का लाभ पर्यटन के मामले में भी काफी अच्छा पहुँचा रहा है. किन्तु इसका जो उलट असर देखनो को मिल रहा है हमे कोशिश करनी चाहिए कि हम जितना हो सके अपने ही संस्कृति का वाहन करे और दूसरों को अपनी संस्कृति से प्रभावित होने दे न कि खुद होकर अपनी संस्कृति को भूल जाए।
मैं ज्योति कुमारी, LifestyleChacha.com पर हिंदी ब्लॉग/ लेख लिखती हूँ। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हूँ और मुझे लिखना बहुत पसंद है।
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